कोई छिड़कत रंग तो कोई मटकत अंग अपना अपना ढंग है अपना अपना रंग अपने से बहार निकल इस जग को पहचान बात समझ आ जायेगी, तू कितना नादान अन्तस् का पट खोल दे जग करेगा सलाम मन अपना भटका नहीं मन को लगा लगाम मीत समय को देखकर खटकाना तू द्वार भाग जायेगा देखना, घर से सब अंधियार हर व्यक्ति है चाहता करना ऐसा काम हींग लगे ना फिटकरी देना पड़े ना दाम दो दिन की है ज़िन्दगी दो दिन का महमान अलमारी में भर रहा क्यों इतना सामान मटक-मटक गोरी चले यौवन भरे उड़ान आँचल ढलका जा रहा गोरी को ना भान – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कोई छिड़कत रंग तो कोई मटकत अंग
कोई छिड़कत रंग तो कोई मटकत अंग
अपना अपना ढंग है अपना अपना रंग
अपने से बहार निकल इस जग को पहचान
बात समझ आ जायेगी, तू कितना नादान
अन्तस् का पट खोल दे जग करेगा सलाम
मन अपना भटका नहीं मन को लगा लगाम
मीत समय को देखकर खटकाना तू द्वार
भाग जायेगा देखना, घर से सब अंधियार
हर व्यक्ति है चाहता करना ऐसा काम
हींग लगे ना फिटकरी देना पड़े ना दाम
दो दिन की है ज़िन्दगी दो दिन का महमान
अलमारी में भर रहा क्यों इतना सामान
मटक-मटक गोरी चले यौवन भरे उड़ान
आँचल ढलका जा रहा गोरी को ना भान
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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