गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग धरा पर तुम्हें लौट आना पड़ेगा, मधुर कल्पना के सुखद पल बितालो मगर खेत के गीत गाना पड़ेगा || विहसती सुवह शाम तारों भरी रात, तेरे लिए एक नूतन कहानी | सजल स्नेह से सिक्त मधु मेह बनकर, नयन में उतरकर छलक जाय पानी || उषा सुन्दरी का अलस रूप यौवन, निहारो मगर भूल जाना पड़ेगा | पवन पर समासीन उन्मुक्त होकर, क्षितिज तक सुघर पंख अपने सजालो, अचिर विश्व में एक पल के लिए ही, मधुर गीत के राग अपने बजा लो || मगर सत्य का सामना जब करोगे, तुम्हें नीड़ को ही सजाना पड़ेगा || कभी इन्द्रधनु के सुखद अंक में हो कभी चाँद रवि की दिशा नापते हो | कभी वृक्ष की शाख पर गुनगुनाते, कभी राग में रात भर जागते हो || मिलन के मधुर पल घड़ी दो घड़ी के, तुम्हें भी विरह गीत गाना पड़ेगा | गहनतम तिमिर में प्रणय भीख लेकर तुम्हें अश्रु जलकण बहाना पड़ेगा || गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग धरा पर तुम्हें लौट आना पड़ेगा || – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग
गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग
धरा पर तुम्हें लौट आना पड़ेगा,
मधुर कल्पना के सुखद पल बितालो
मगर खेत के गीत गाना पड़ेगा ||
विहसती सुवह शाम तारों भरी रात,
तेरे लिए एक नूतन कहानी |
सजल स्नेह से सिक्त मधु मेह बनकर,
नयन में उतरकर छलक जाय पानी ||
उषा सुन्दरी का अलस रूप यौवन,
निहारो मगर भूल जाना पड़ेगा |
पवन पर समासीन उन्मुक्त होकर,
क्षितिज तक सुघर पंख अपने सजालो,
अचिर विश्व में एक पल के लिए ही,
मधुर गीत के राग अपने बजा लो ||
मगर सत्य का सामना जब करोगे,
तुम्हें नीड़ को ही सजाना पड़ेगा ||
कभी इन्द्रधनु के सुखद अंक में हो
कभी चाँद रवि की दिशा नापते हो |
कभी वृक्ष की शाख पर गुनगुनाते,
कभी राग में रात भर जागते हो ||
मिलन के मधुर पल घड़ी दो घड़ी के,
तुम्हें भी विरह गीत गाना पड़ेगा |
गहनतम तिमिर में प्रणय भीख लेकर
तुम्हें अश्रु जलकण बहाना पड़ेगा ||
गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग
धरा पर तुम्हें लौट आना पड़ेगा ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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