सुधियों के गलियारे में मन भटक गया हो चुपके से आ जाना मेरा मन दर्पण है | एकाकी जीवन का विष उन्माद भरे जब, पलकों में छुप जाना मेरा मन कंचन है || चढ़ी नदी की धार किनारे तोड़ रही हो, सावन के सपनों से नाते जोड़ रही हो | परछाहीं भी जब सिरहाने सिमट-सिमट कर, भुजबन्धों से शिथिल कामना छोड़ रही हो || आँसू के सैलाब पार कर धीरे-धीरे, आ जाना संगिनि तेरा शत-अभिनन्दन है | यह कैसी दीवार धुयें की लहराती है, वरसाती मेघों में कैसी शरमाती है | एक बूँद स्वाती की कब मोती वन जाती, एक किरन कव जीवन में रस वरसाती है || घड़ियालों की पीठ कहाँ तक सहलाओगी, दीख रहा जो आकर्षण सचमुच बन्धन है | कवि की भी तो ऐसी ही कुछ अजब कहानी, अधरों पर मुसकान और आखों में पानी || आसमान का पंछी जब थक थक जाता है, शिथिल पंख ही भार शक्ति की यही निशानी | पथराई आँखे जब व्यथा अग्नि में झुलसे, तपन मिटालो मेरा मन नन्दन कानन है || – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सुधियों के गलियारे में
सुधियों के गलियारे में मन भटक गया हो
चुपके से आ जाना मेरा मन दर्पण है |
एकाकी जीवन का विष उन्माद भरे जब,
पलकों में छुप जाना मेरा मन कंचन है ||
चढ़ी नदी की धार किनारे तोड़ रही हो,
सावन के सपनों से नाते जोड़ रही हो |
परछाहीं भी जब सिरहाने सिमट-सिमट कर,
भुजबन्धों से शिथिल कामना छोड़ रही हो ||
आँसू के सैलाब पार कर धीरे-धीरे,
आ जाना संगिनि तेरा शत-अभिनन्दन है |
यह कैसी दीवार धुयें की लहराती है,
वरसाती मेघों में कैसी शरमाती है |
एक बूँद स्वाती की कब मोती वन जाती,
एक किरन कव जीवन में रस वरसाती है ||
घड़ियालों की पीठ कहाँ तक सहलाओगी,
दीख रहा जो आकर्षण सचमुच बन्धन है |
कवि की भी तो ऐसी ही कुछ अजब कहानी,
अधरों पर मुसकान और आखों में पानी ||
आसमान का पंछी जब थक थक जाता है,
शिथिल पंख ही भार शक्ति की यही निशानी |
पथराई आँखे जब व्यथा अग्नि में झुलसे,
तपन मिटालो मेरा मन नन्दन कानन है ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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