ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आखों का आमंत्रण
जैसे सीपी में सिमट उठा हो सागर का उद्वेलित मन ||
अन्तर के चिन्तन में खोकर
तारों का दल चुपचुप सोया
साँसों के सरगम पर सधकर
जैसे विरहिन का मन रोया
उर के अन्दर कुछ महक गया जैसे महका हो चन्दन-वन
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आँखों का आमंत्रण ||
वासन्ती धरती की सिहरन
नादान चकोरों की तड़पन
भीतर तक मन को छू जाये
परदेसी के मन का दरपन
क्यों बहक बहक कर उठे पाँव शतवार नमन शतशत बन्दन
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आँखों का आमंत्रण ||
कलियाँ सब घूँघट खोल खोल
क्यों अपलक तुम्हें निहार रहीं
अनजाने कुछ संकेत मिले
पहचानी प्रीति पुकार उठी
मौसम के घुँघुरु खनक उठे जैसे भौरों का हो गुन्जन
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आँखों का आमंत्रण ||
क्यों बाह उठाये चंचल तन
रस की फुहार से भींग उठा
अन्तर का भाव सहज उन्मन
जाने क्यों मीठा लगता है यह प्रीति रीति का भव बन्धन
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आखों का आमंत्रण ||
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आखों का आमंत्रण
जैसे सीपी में सिमट उठा हो सागर का उद्वेलित मन ||
अन्तर के चिन्तन में खोकर
तारों का दल चुपचुप सोया
साँसों के सरगम पर सधकर
जैसे विरहिन का मन रोया
उर के अन्दर कुछ महक गया जैसे महका हो चन्दन-वन
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आँखों का आमंत्रण ||
वासन्ती धरती की सिहरन
नादान चकोरों की तड़पन
भीतर तक मन को छू जाये
परदेसी के मन का दरपन
क्यों बहक बहक कर उठे पाँव शतवार नमन शतशत बन्दन
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आँखों का आमंत्रण ||
कलियाँ सब घूँघट खोल खोल
क्यों अपलक तुम्हें निहार रहीं
अनजाने कुछ संकेत मिले
पहचानी प्रीति पुकार उठी
मौसम के घुँघुरु खनक उठे जैसे भौरों का हो गुन्जन
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आँखों का आमंत्रण ||
क्यों बाह उठाये चंचल तन
रस की फुहार से भींग उठा
अन्तर का भाव सहज उन्मन
जाने क्यों मीठा लगता है यह प्रीति रीति का भव बन्धन
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आखों का आमंत्रण ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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