हमारा वन्दे मातरम् वासन्ती धरती का आँचल फहरे नील गगन ….. हमारा…. रस की पड़े फुहार अंग अंग बाहर भीतर भींगे सोनजुही कचनार गंध प्रानों को बरवस सीचे काशमीर केसर की क्यारी रूप राशि कंचन…. हमारा सागर इसके चरण पखारे हिमगिरि मुकुट सवारे मुजबन्धों पर अचल छितिज रवि राशि आरती उतारे नदियाँ इसकी मुक्तकेश सी हरा-भरा आँगन… हमारा…. धर्म जाति संस्कृति अनेक पर एक देश की माटी गंगा यमुना सिन्ध नर्वदा धन्य सोन की घाटी वीर प्रसू धरती को मेरा बार बार वन्दन…. हमारा…. गीता ग्रन्थ कुरान वाइविल अलग अलग है रीति मानव तो वस मानव है मन से मानव की प्रीति भेद भाव की दूरी सिमटे जब वरसे सावन…. हमारा बढ़ते हुये चरण इसके आशा के दीप जलायें शान्ति-दूत हिमगिरि प्रहरी हम इसको शीश झुकायें हिन्दी है माथे की बिन्दी पदरज है चन्दन…. हमारा…. – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हमारा वन्दे मातरम्
हमारा वन्दे मातरम्
वासन्ती धरती का आँचल फहरे नील गगन ….. हमारा….
रस की पड़े फुहार अंग अंग बाहर भीतर भींगे
सोनजुही कचनार गंध प्रानों को बरवस सीचे
काशमीर केसर की क्यारी रूप राशि कंचन…. हमारा
सागर इसके चरण पखारे हिमगिरि मुकुट सवारे
मुजबन्धों पर अचल छितिज रवि राशि आरती उतारे
नदियाँ इसकी मुक्तकेश सी हरा-भरा आँगन… हमारा….
धर्म जाति संस्कृति अनेक पर एक देश की माटी
गंगा यमुना सिन्ध नर्वदा धन्य सोन की घाटी
वीर प्रसू धरती को मेरा बार बार वन्दन…. हमारा….
गीता ग्रन्थ कुरान वाइविल अलग अलग है रीति
मानव तो वस मानव है मन से मानव की प्रीति
भेद भाव की दूरी सिमटे जब वरसे सावन…. हमारा
बढ़ते हुये चरण इसके आशा के दीप जलायें
शान्ति-दूत हिमगिरि प्रहरी हम इसको शीश झुकायें
हिन्दी है माथे की बिन्दी पदरज है चन्दन…. हमारा….
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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