ज़िन्दगी की बात फिर करने लगे। ये क़दम रुके थे फिर चलने लगे।। भावनाएँ हिलोरें लेने लगीं मीन बनकर नदी में रहने लगीं फिर सपन, विहग बन उड़ने लगे। ये क़दम रुके थे फिर चलने लगे।। चाँद के अधरों पे हँसती चाँदनी सनसनाती पवन छेड़े रागिनी फिर नज़ारे बाँह में कसने लगे। ये क़दम रुके थे फिर चलने लगे।। कौन दस्तक द्वार पे है दे रहा साथ अपने चलने को है कह रहा फिर नगाड़े प्रीत के बजने लगे। ये क़दम रुके थे फिर चलने लगे।। – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
ज़िन्दगी की बात फिर
ज़िन्दगी की बात फिर
करने लगे।
ये क़दम रुके थे फिर
चलने लगे।।
भावनाएँ हिलोरें
लेने लगीं
मीन बनकर नदी में
रहने लगीं
फिर सपन, विहग बन
उड़ने लगे।
ये क़दम रुके थे फिर
चलने लगे।।
चाँद के अधरों पे
हँसती चाँदनी
सनसनाती पवन
छेड़े रागिनी
फिर नज़ारे बाँह में
कसने लगे।
ये क़दम रुके थे फिर
चलने लगे।।
कौन दस्तक द्वार पे
है दे रहा
साथ अपने चलने को
है कह रहा
फिर नगाड़े प्रीत के
बजने लगे।
ये क़दम रुके थे फिर
चलने लगे।।
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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