खिंच लाती है जुस्तजू तेरी अच्छी लगती है गुफ्तगू तेरी फूल में चाँद में हरेक मंज़र में शक्ल दिखती है हूबहू तेरी मालोज़र क्या है कुछ नहीं ये जहाँ जां से प्यारी है आबरू तेरी तपता सहरा हो या हो ग़म की घटा चैन देती है आरजू तेरी ना हुआ तुझसा और ना होगा खुद सनी अपना ज़ात तू तेरी पास “इक़बाल” के दूर होकर भी खुशबू फैली है चारसू तेरी – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
खिंच लाती है
खिंच लाती है जुस्तजू तेरी
अच्छी लगती है गुफ्तगू तेरी
फूल में चाँद में हरेक मंज़र में
शक्ल दिखती है हूबहू तेरी
मालोज़र क्या है कुछ नहीं ये जहाँ
जां से प्यारी है आबरू तेरी
तपता सहरा हो या हो ग़म की घटा
चैन देती है आरजू तेरी
ना हुआ तुझसा और ना होगा
खुद सनी अपना ज़ात तू तेरी
पास “इक़बाल” के दूर होकर भी
खुशबू फैली है चारसू तेरी
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
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