फिसलन ही फिसलन यहां, फिसल रहा इंसान कीचड़ में सनकर यहां भूल रहा ईमान भोर हुई किरणें हँसें, पंछी गायें गान अब तो उठ जा बांवरे, मत सो चादर तान कोयल कूके डाल पर भंवर करे गुंजार पीली सरसों हँस रही हँसे बसन्त बहार आदमी ने बदल लिया, जब जीने का ढंग फीका फीका सा लगे, हर मौसम का रंग तेरा जब मैनें किया, सच्चे मन से ध्यान भाग गया जाने कहां अन्दर का शैतान गीतों के दरबार में ग़ज़लें छिड़के रंग दोहे चंग बजा रहे पीकर यारों भंग ग्वाल-बाल नाचें सभी और करें हुड़दंग गोरी ठुमके मारती सजन बजाये चंग – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के दोहे जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
फिसलन ही फिसलन यहां,
फिसलन ही फिसलन यहां, फिसल रहा इंसान
कीचड़ में सनकर यहां भूल रहा ईमान
भोर हुई किरणें हँसें, पंछी गायें गान
अब तो उठ जा बांवरे, मत सो चादर तान
कोयल कूके डाल पर भंवर करे गुंजार
पीली सरसों हँस रही हँसे बसन्त बहार
आदमी ने बदल लिया, जब जीने का ढंग
फीका फीका सा लगे, हर मौसम का रंग
तेरा जब मैनें किया, सच्चे मन से ध्यान
भाग गया जाने कहां अन्दर का शैतान
गीतों के दरबार में ग़ज़लें छिड़के रंग
दोहे चंग बजा रहे पीकर यारों भंग
ग्वाल-बाल नाचें सभी और करें हुड़दंग
गोरी ठुमके मारती सजन बजाये चंग
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी के दोहे
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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