गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार आँख लगी ना रात भर खुला रहा हिय-द्वार सपनों में, मैं देखती तेरी छवि सरताज आजाओ घर आँगने दर्शन दो नटराज नयना तू मटकाय के हिय मेरा भटकाय सारा जग देखत सनम! तोहे लाज न आय नयन सजन से क्या मिले भूल गयी संसार कुछ भी अब न भला लगे, भला लगे पिय-द्वार मेघ बरस तू झूमकर जा न सकें “वो” आज दोनों बैठें साथ में करें न कुछ भी काज –जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के दोहे जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार
गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार
आँख लगी ना रात भर खुला रहा हिय-द्वार
सपनों में, मैं देखती तेरी छवि सरताज
आजाओ घर आँगने दर्शन दो नटराज
नयना तू मटकाय के हिय मेरा भटकाय
सारा जग देखत सनम! तोहे लाज न आय
नयन सजन से क्या मिले भूल गयी संसार
कुछ भी अब न भला लगे, भला लगे पिय-द्वार
मेघ बरस तू झूमकर जा न सकें “वो” आज
दोनों बैठें साथ में करें न कुछ भी काज
–जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी के दोहे
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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