तपा के अगन मे फिर कंचन बनता है
यूँ ही नही कोई भक्त ,हरि का दास बनता है ।
हर उम्र का एक कायदा होना चाहिए ,
हरि भजन का भी कोई तरिका होना चाहिए ।
जवानी ,दौलत ,शौहरत ,रहती नही सदा,
थोडा तो उम्र का भी कोई तका़जा होना चाहिए ।
न जाने कौनसी बयार चल रही है इस सदी मे ,
शौहरत के शिखर पर बैठने का लिहाज़ होना चाहिए ।
तपा के अगन मे फिर कंचन बनता है
तपा के अगन मे फिर कंचन बनता है
यूँ ही नही कोई भक्त ,हरि का दास बनता है ।
हर उम्र का एक कायदा होना चाहिए ,
हरि भजन का भी कोई तरिका होना चाहिए ।
जवानी ,दौलत ,शौहरत ,रहती नही सदा,
थोडा तो उम्र का भी कोई तका़जा होना चाहिए ।
न जाने कौनसी बयार चल रही है इस सदी मे ,
शौहरत के शिखर पर बैठने का लिहाज़ होना चाहिए ।
–हेमलता पालीवाल “हेमा”
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ
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