लूट रहे सब बदल के चेहरा सब अन्धे हैं जग है बहरा रिश्ते नातों की मत पूछो सब छिछले हैं कोई न गहरा जब करते वो तेरा मेरा जीवन लागे ठहरा ठहरा सच के आँगन झूठ हँसे है कौन लगाये इस पे पहरा लूट रहे बाला की इज़्जत मानवता पे दाग़ है गहरा –जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
लूट रहे सब बदल के चेहरा
लूट रहे सब बदल के चेहरा
सब अन्धे हैं जग है बहरा
रिश्ते नातों की मत पूछो
सब छिछले हैं कोई न गहरा
जब करते वो तेरा मेरा
जीवन लागे ठहरा ठहरा
सच के आँगन झूठ हँसे है
कौन लगाये इस पे पहरा
लूट रहे बाला की इज़्जत
मानवता पे दाग़ है गहरा
–जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें