लाल-लाल आँखों से
अपलक घूरता
स्टेशन का आउटर सिगनल
किसी गाड़ी के
आने की सूचना पाते ही
चौकस होकर हरा हो जाता है
त- ड़-त-ड़-ध-ड़-ध-ड़
गाड़ी आती है
और उसे पार करके स्टेशन पर रुकती है
तत्काल
विवश बेकल
लाल-लाल आँखों से
फिर घूरने लग जाता है
स्टेशन का आउटर सिगनल
स्टार्टर सिगनल के हरा होते ही
गार्ड की हरी झंडी, व्हिसिल के ठीक बाद
फिर चल देती है गाड़ी
बेचारा सिगनल
सुनता है कुछ क्षणों तक
गाड़ी के आगे जाने की आवाज
आँखों से ओझल हो जाता है
जब आखिरी डिब्बा,
फिर वह अपना रंग बदल
किसी मुस्तैद सिपाही की तरह
सावधान की मुद्रा में हो जाता है
और गाड़ी चल देती है आगे
अपने सफर की और
क्योंकि उसे अपना कर्तव्य निभाना है
अन्दर बैठे यात्रियों को
उनके गन्तव्य तक पहुँचाना है
लाल-लाल आँखों से अपलक घूरता
लाल-लाल आँखों से
अपलक घूरता
स्टेशन का आउटर सिगनल
किसी गाड़ी के
आने की सूचना पाते ही
चौकस होकर हरा हो जाता है
त- ड़-त-ड़-ध-ड़-ध-ड़
गाड़ी आती है
और उसे पार करके स्टेशन पर रुकती है
तत्काल
विवश बेकल
लाल-लाल आँखों से
फिर घूरने लग जाता है
स्टेशन का आउटर सिगनल
स्टार्टर सिगनल के हरा होते ही
गार्ड की हरी झंडी, व्हिसिल के ठीक बाद
फिर चल देती है गाड़ी
बेचारा सिगनल
सुनता है कुछ क्षणों तक
गाड़ी के आगे जाने की आवाज
आँखों से ओझल हो जाता है
जब आखिरी डिब्बा,
फिर वह अपना रंग बदल
किसी मुस्तैद सिपाही की तरह
सावधान की मुद्रा में हो जाता है
और गाड़ी चल देती है आगे
अपने सफर की और
क्योंकि उसे अपना कर्तव्य निभाना है
अन्दर बैठे यात्रियों को
उनके गन्तव्य तक पहुँचाना है
–गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
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