सिस्कियां ले रहे आज रिश्ते सभी झूठ लगने लगे लोग हंसते सभी हर तरफ़ साज़िशो की चली है हवा खौफ़ज़द हो रहे सब्ज़ पत्ते सभी भाव इंसानियत का उतरता गया आदमी हो गये आज सस्ते सभी हमसफ़र वो नहीं साथ फ़िर भी रहे एक हम ही नही लोग कहते सभी उठ रहा है धुआँ अब यहाँ इसलिये बुझ गए हैं दीये जलते-जलते सभी भूख से बिलबिलाती गरीबी यहाँ देख कर भी मियाँ आगे बढ़ते सभी कर ‘निशा’ जानोदिल तू खुदा पे फ़िदा एक उसके सिवा गैर लगते सभी –डॉ. नसीमा ‘निशा’ डॉ. नसीमा निशा जी की ग़ज़ल डॉ. नसीमा निशा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सिस्कियां ले रहे आज रिश्ते सभी
सिस्कियां ले रहे आज रिश्ते सभी
झूठ लगने लगे लोग हंसते सभी
हर तरफ़ साज़िशो की चली है हवा
खौफ़ज़द हो रहे सब्ज़ पत्ते सभी
भाव इंसानियत का उतरता गया
आदमी हो गये आज सस्ते सभी
हमसफ़र वो नहीं साथ फ़िर भी रहे
एक हम ही नही लोग कहते सभी
उठ रहा है धुआँ अब यहाँ इसलिये
बुझ गए हैं दीये जलते-जलते सभी
भूख से बिलबिलाती गरीबी यहाँ
देख कर भी मियाँ आगे बढ़ते सभी
कर ‘निशा’ जानोदिल तू खुदा पे फ़िदा
एक उसके सिवा गैर लगते सभी
–डॉ. नसीमा ‘निशा’
डॉ. नसीमा निशा जी की ग़ज़ल
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