कौन कहता कि रो रही आँखें। देख लो दाग धो रही आँखें।। ठेस दिल को लगा गया मेरे, बेवफा बोझ ढ़ो रही आँखें। जिस घड़ी छोड़ वो गया मुझको, एक पल भी न सो रही आँखें। लौट आना कभी बहाने से, फिर वही आस बो रही आँखें। याद उनकी सता रही हमको, हार बेजान हो रही आँखें। चाँद रातें रजत लगें काली, यूँ चमक आज खो रही आँखें। –अवधेश कुमार ‘रजत’ अवधेश कुमार 'रजत' जी की ग़ज़ल अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कौन कहता कि रो रही आँखें
कौन कहता कि रो रही आँखें।
देख लो दाग धो रही आँखें।।
ठेस दिल को लगा गया मेरे,
बेवफा बोझ ढ़ो रही आँखें।
जिस घड़ी छोड़ वो गया मुझको,
एक पल भी न सो रही आँखें।
लौट आना कभी बहाने से,
फिर वही आस बो रही आँखें।
याद उनकी सता रही हमको,
हार बेजान हो रही आँखें।
चाँद रातें रजत लगें काली,
यूँ चमक आज खो रही आँखें।
–अवधेश कुमार ‘रजत’
अवधेश कुमार 'रजत' जी की ग़ज़ल
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