ऐज़ाज़े-मुहब्बत है या इश्क का अहसाँ है अब तक मेरे हाथों में अपना ही गिरेबाँ है तस्वीर मेरी रख कर मुजरिम सी निगाहों में इक मैं ही परेशाँ क्या वो भी तो परेशाँ है सुन कर भी करोगे क्या तुम मेरी कहानी को हर एक कहानी का बस एक ही उन्वाँ है हो खैर उसी जानिब दुनिया की उठीं नज़रें जो फूल बियाबाँ में ताज़ीमे-बियाबाँ है इस दौर के फूलों को चुन पायेगा वो कैसे जिस शख़्स के हाथों में माज़ी का गिरेबाँ है आकर तो कभी देखो इस दिल के चमनखाने हर फूल मेरे दिल का अपने में गुलिसताँ है भूलूँगा तुम्हें कैसे अब तुम ही कहो मुझसे जो दर्द दिया तुमने वो दर्द रग-ए-जाँ है तारीख़ बदल दी है हालात ने ऐ-साग़र मैं जिसका निगहबाँ था वो मेरा निगहबाँ है –विनय साग़र जायसवाल विनय साग़र जायसवाल जी की प्यार मुहब्बत पर ग़ज़ल विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
ऐज़ाज़े-मुहब्बत है
ऐज़ाज़े-मुहब्बत है या इश्क का अहसाँ है
अब तक मेरे हाथों में अपना ही गिरेबाँ है
तस्वीर मेरी रख कर मुजरिम सी निगाहों में
इक मैं ही परेशाँ क्या वो भी तो परेशाँ है
सुन कर भी करोगे क्या तुम मेरी कहानी को
हर एक कहानी का बस एक ही उन्वाँ है
हो खैर उसी जानिब दुनिया की उठीं नज़रें
जो फूल बियाबाँ में ताज़ीमे-बियाबाँ है
इस दौर के फूलों को चुन पायेगा वो कैसे
जिस शख़्स के हाथों में माज़ी का गिरेबाँ है
आकर तो कभी देखो इस दिल के चमनखाने
हर फूल मेरे दिल का अपने में गुलिसताँ है
भूलूँगा तुम्हें कैसे अब तुम ही कहो मुझसे
जो दर्द दिया तुमने वो दर्द रग-ए-जाँ है
तारीख़ बदल दी है हालात ने ऐ-साग़र
मैं जिसका निगहबाँ था वो मेरा निगहबाँ है
–विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल जी की प्यार मुहब्बत पर ग़ज़ल
विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ
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