कहना यह है की……
छोड़िये
चापलूसी, चमचागिरी
अलंकारिक भाषणों की नेतागिरी
मात्र बातों से काम नहीं चल सकता
समस्याओं का पहाड़ नहीं टल सकता
कहना यह है कि…….
आप कहते हैं
आप वायदे निभायेंगे
इसी तरह कब तलक बहकायेंगे
झूठे सब्ज बागा दिखायेंगे
जान लीजिए
अब हम जान गये हैं
आपकी बातों में न आयेंगे
कहना यह हैं कि……….
आखिर यह फर्क/कब तक रहेगा?
मानव का जीवन बना नर्क/कब तक रहेगा?
कोई खा-खा कर मर रहा हैं
कोई भूखों जिन्दगी
बसर कर रहा है
कोई महलों में / ऐश कर रहा है
कोई सड़कों पर / सर्द आह भर रहा है
और तो और
लोग कहते हैं
समाज परिवर्तन के
दौर से गुजर रहा हैं |
कहना यह है की……छोड़िये
कहना यह है की……
छोड़िये
चापलूसी, चमचागिरी
अलंकारिक भाषणों की नेतागिरी
मात्र बातों से काम नहीं चल सकता
समस्याओं का पहाड़ नहीं टल सकता
कहना यह है कि…….
आप कहते हैं
आप वायदे निभायेंगे
इसी तरह कब तलक बहकायेंगे
झूठे सब्ज बागा दिखायेंगे
जान लीजिए
अब हम जान गये हैं
आपकी बातों में न आयेंगे
कहना यह हैं कि……….
आखिर यह फर्क/कब तक रहेगा?
मानव का जीवन बना नर्क/कब तक रहेगा?
कोई खा-खा कर मर रहा हैं
कोई भूखों जिन्दगी
बसर कर रहा है
कोई महलों में / ऐश कर रहा है
कोई सड़कों पर / सर्द आह भर रहा है
और तो और
लोग कहते हैं
समाज परिवर्तन के
दौर से गुजर रहा हैं |
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
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