अपने आस-पास घिरे
अंधेरों से तंग आकर
मैं ढूँढने लगा
सूरज का कोई विकल्प
तुम लोग ! इतमिनान रखो
कोई न कोई हल
निकलेगा जरूर
वैसे क्यारियों में बो दिये हैं मैने
चाँद और सूरज के बीज
बीज पनपेंगे….
पौधे निकलेंगे….
बड़े होंगे, फलेंगे-फूलेंगे
और तब, डालियों पर झूलेंगे
तमाम चमकते चाँद और सूरज
उस वक्त, तुम लोग
जितने चाहे, ले लेना
और…. जहाँ-जहाँ अन्धेरा हो
ले जाकर टेंगा देना
समय कुछ लगा सकता है
मगर विशवास रखो
फसल लगा जाने के बाद,
तुम्हें शिकायत का कोई मौका न दूँगा
यकीन मानो……….
मैं कोई पालिटिक्स नहीं कर रहा
क्योंकि मैं………
कोई राजनीतिज्ञ नहीं
बल्कि एक कवि हूँ
और कवि होने के नाते
तुम्हारी कसम
जो भी कह रहा हूँ
सच कह रहा हूँ
और सच के सिवा
कुछ नहीं कह रहा हूँ
उस रोज उगने के साथ ही
उस रोज
उगने के साथ ही
सूरज, अचानक फ्यूज हो गया
अपने आस-पास घिरे
अंधेरों से तंग आकर
मैं ढूँढने लगा
सूरज का कोई विकल्प
तुम लोग ! इतमिनान रखो
कोई न कोई हल
निकलेगा जरूर
वैसे क्यारियों में बो दिये हैं मैने
चाँद और सूरज के बीज
बीज पनपेंगे….
पौधे निकलेंगे….
बड़े होंगे, फलेंगे-फूलेंगे
और तब, डालियों पर झूलेंगे
तमाम चमकते चाँद और सूरज
उस वक्त, तुम लोग
जितने चाहे, ले लेना
और…. जहाँ-जहाँ अन्धेरा हो
ले जाकर टेंगा देना
समय कुछ लगा सकता है
मगर विशवास रखो
फसल लगा जाने के बाद,
तुम्हें शिकायत का कोई मौका न दूँगा
यकीन मानो……….
मैं कोई पालिटिक्स नहीं कर रहा
क्योंकि मैं………
कोई राजनीतिज्ञ नहीं
बल्कि एक कवि हूँ
और कवि होने के नाते
तुम्हारी कसम
जो भी कह रहा हूँ
सच कह रहा हूँ
और सच के सिवा
कुछ नहीं कह रहा हूँ
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
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