तुम चाहो तबेलो को बाजार कह दो। तुम चाहो पतझडो को बहार कह दो।। तुम्हारा ही राज है अभी यहाँ पर। तुम चाहो तो स्कूटर को कार कह दो।। छुट्टी का दिन बितने लगा यही पर। अपने दफ्तर को तुम घर बार कह दो।। इसी पर मिलने लगी अब हर खबर। अपने मोबाइल को अखबार कह दो।। तुम्हारी इस सहुलियत भरी जिंदगी मे। मुसीबत खडी करे उसे सरकार कह दो।। फर्जी डिग्रीया खुब ले ली अब लोगों ने, तुम चाहो तो पढे लिखे को गवार कह दो। – पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की सरकार के खिलाफ कविता पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
तुम चाहो तबेलो को बाजार कह दो
तुम चाहो तबेलो को बाजार कह दो।
तुम चाहो पतझडो को बहार कह दो।।
तुम्हारा ही राज है अभी यहाँ पर।
तुम चाहो तो स्कूटर को कार कह दो।।
छुट्टी का दिन बितने लगा यही पर।
अपने दफ्तर को तुम घर बार कह दो।।
इसी पर मिलने लगी अब हर खबर।
अपने मोबाइल को अखबार कह दो।।
तुम्हारी इस सहुलियत भरी जिंदगी मे।
मुसीबत खडी करे उसे सरकार कह दो।।
फर्जी डिग्रीया खुब ले ली अब लोगों ने,
तुम चाहो तो पढे लिखे को गवार कह दो।
– पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की सरकार के खिलाफ कविता
पी एल बामनिया जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें