नदी बन बहती हो ग़ज़ल कुछ ऐसी हो सड़क से निकली हो गली में रहती हो ज़मी पर चलती हो फ़लक पे उड़़ती हो सफ़र में रहती हो ख़बर सब रखती हो इशारों में सब से बहुत कुछ कहती हो ज़माने का सारा दर्द भी सहती हो समन्दर से गहरी समझ जो रखती हो – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की नदी पर कविता जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
नदी बन बहती हो ग़ज़ल कुछ ऐसी हो
नदी बन बहती हो
ग़ज़ल कुछ ऐसी हो
सड़क से निकली हो
गली में रहती हो
ज़मी पर चलती हो
फ़लक पे उड़़ती हो
सफ़र में रहती हो
ख़बर सब रखती हो
इशारों में सब से
बहुत कुछ कहती हो
ज़माने का सारा
दर्द भी सहती हो
समन्दर से गहरी
समझ जो रखती हो
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की नदी पर कविता
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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