हमें अपनी ज़िंदगी से कुछ यूँ मिटा दीजिए जैसे रेत में पानी की बूँदें मिट जाती हैं दुनिया यूँ न कह सके कि हम मिले थे कभी मेरे चेहरे को कुछ इस तरह भुला दीजिए – एकता खान एकता खान जी की ज़िंदगी पर कविता पर कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हमें अपनी ज़िंदगी से
हमें अपनी ज़िंदगी से
कुछ यूँ मिटा दीजिए
जैसे रेत में पानी की बूँदें
मिट जाती हैं
दुनिया यूँ न कह सके
कि हम मिले थे कभी
मेरे चेहरे को कुछ
इस तरह भुला दीजिए
– एकता खान
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