देखो तो दीवार कहाँ है दो धारी तलवार कहाँ है तुम भी इंसा ,हम भी इंसा सोचो तो तक़रार कहाँ है गंगा- जल जो चाहे पी ले मज़हब पहरेदार कहाँ है साथ जियेन्गे, साथ मरेन्गे बोलो वो इक़रार कहाँ है एक फ़लक है एक ज़मी है हमको भी इंकार कहाँ है हाथ पकड गर साथ चले तो फिर मन्ज़िल दुश्वार कहाँ है आज ‘निशा’ सब रिश्ते बदले पहले जैसा प्यार कहाँ है – डॉ. नसीमा निशा डॉ. नसीमा निशा जी की शिकायत पर कविता डॉ. नसीमा निशा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
देखो तो दीवार कहाँ है
देखो तो दीवार कहाँ है
दो धारी तलवार कहाँ है
तुम भी इंसा ,हम भी इंसा
सोचो तो तक़रार कहाँ है
गंगा- जल जो चाहे पी ले
मज़हब पहरेदार कहाँ है
साथ जियेन्गे, साथ मरेन्गे
बोलो वो इक़रार कहाँ है
एक फ़लक है एक ज़मी है
हमको भी इंकार कहाँ है
हाथ पकड गर साथ चले तो
फिर मन्ज़िल दुश्वार कहाँ है
आज ‘निशा’ सब रिश्ते बदले
पहले जैसा प्यार कहाँ है
– डॉ. नसीमा निशा
डॉ. नसीमा निशा जी की शिकायत पर कविता
डॉ. नसीमा निशा जी की रचनाएँ
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