जगमग होगी रातें सारी,
दीपमालिका सज जाएगी।
ऊँची-ऊँची अटालिकाएँ,
रोशनी में खूब सज जाएगी।
तब धरती के किसी कोने में,
तम का पसरा अँधियारा हो,
माटी का एक दीपक उठा के
वहाँ तुम जला कर रख देना,
हाँ एक दीया तुम जला देना।
जब त्योहारों पर बने पकवान,
सज-धज जाएँ सारी दुकान।
मुँह मीठा करके एक-दूसरे के
बन जाओ तुम जब मेहमान।
तब भुख से व्याकुल दम तोड़ते
उस घर पर मीठा उपहार दे आना
हाँ, खुशियों का दीया जला आना।
नए-नए परिधानों से सजेंगे-धजेंगे
रेशम-सिल्क के पौशाक बनेंगे।
बेशकीमती दुशाले, उपरणे होंगे,
तब फटे-चिथड़े, अर्धनग्न तन को
कोमल, नम्र कोई वस्त्र दे देना,
हाँ, मानवता का एक दीया जला देना।
अज्ञानता के उस घनघोर तम में
ज्ञान का दीप प्रज्वलित करना।
खुशियों की बाती जला-जला कर
हर्ष व उमंगो के दीए जला देना,
हाँ, उनके घर भी दीया जला देना।
उनके घर भी दीया जले
जगमग होगी रातें सारी,
दीपमालिका सज जाएगी।
ऊँची-ऊँची अटालिकाएँ,
रोशनी में खूब सज जाएगी।
तब धरती के किसी कोने में,
तम का पसरा अँधियारा हो,
माटी का एक दीपक उठा के
वहाँ तुम जला कर रख देना,
हाँ एक दीया तुम जला देना।
जब त्योहारों पर बने पकवान,
सज-धज जाएँ सारी दुकान।
मुँह मीठा करके एक-दूसरे के
बन जाओ तुम जब मेहमान।
तब भुख से व्याकुल दम तोड़ते
उस घर पर मीठा उपहार दे आना
हाँ, खुशियों का दीया जला आना।
नए-नए परिधानों से सजेंगे-धजेंगे
रेशम-सिल्क के पौशाक बनेंगे।
बेशकीमती दुशाले, उपरणे होंगे,
तब फटे-चिथड़े, अर्धनग्न तन को
कोमल, नम्र कोई वस्त्र दे देना,
हाँ, मानवता का एक दीया जला देना।
अज्ञानता के उस घनघोर तम में
ज्ञान का दीप प्रज्वलित करना।
खुशियों की बाती जला-जला कर
हर्ष व उमंगो के दीए जला देना,
हाँ, उनके घर भी दीया जला देना।
– हेमलता पालीवाल ‘हेमा’
हेमलता जी की अंधकार मिटाने पर कविता
हेमलता पालीवाल 'हेमा' जी की रचनाएँ
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