नयनों में आपके ही डूब हम जीने लगे, मदहोशी दुनिया की पीछे छोड़ आये हैं। जीत हार का कोई सताए अब भय नहीं, भीड़ भरी राहों से कदम मोड़ आये हैं। कंचन सी काया मतवाली चाल देख प्रिय, व्यर्थ के नज़ारों का वहम तोड़ आये हैं। खींच नहीं तोड़ियेगा झटके से कभी अब, नेह डोर साथ आप के ही जोड़ आये हैं।। – अवधेश कुमार रजत रजत जी की श्रृंगार छंद रचना अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
नयनों में आपके ही डूब हम जीने लगे
नयनों में आपके ही डूब हम जीने लगे,
मदहोशी दुनिया की पीछे छोड़ आये हैं।
जीत हार का कोई सताए अब भय नहीं,
भीड़ भरी राहों से कदम मोड़ आये हैं।
कंचन सी काया मतवाली चाल देख प्रिय,
व्यर्थ के नज़ारों का वहम तोड़ आये हैं।
खींच नहीं तोड़ियेगा झटके से कभी अब,
नेह डोर साथ आप के ही जोड़ आये हैं।।
– अवधेश कुमार रजत
रजत जी की श्रृंगार छंद रचना
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
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2 replies to “नयनों में आपके ही डूब हम जीने लगे”
Pavanesh Kumar Tiwari
आपकी रचनाएं अविस्मरणीय है।
Kavya Jyoti
धन्यवाद